आइये मनाएं महिला दिवस
की शायद कल हट सकें
अस्पतालों के बाहर लगी तख्तियां
जिन पर लिखा होता है
की "यहाँ लिंग परिक्षण नहीं किया जाता"
(की जो इशारा मात्र होता है
यह बताने का यहाँ ये संभव है)
की शायद बंद हो सके
दी जाने वाली बधाईयां
पुत्र जन्म पर
गाये जाने वाले सोहर
बजाई जाने वाली थाली
हिजड़ों के नाच
और बेटी के जन्म पर
"कोई नहीं जी आजकल तो
बेटे और बेटी बराबर हैं"
की शायद फिर न
नोच कर फेक दी जाए
गटर के पास कोई कन्या
जो पिछले नवरात्रों में
पूजी गयी थी
देवी के नाम पर
की शायद बंद हो सके चकले
जहाँ हर दिन औरत
तौलकर खरीदी जाती है
बकरे और मुर्गे
के गोश्त के भाव
की शायद जीवन साथी चुनते समय
देखि जाए सिर्फ और सिर्फ लड़की
न तौली जाए रूपए या रसूख के पलड़े पर
और फिर न ढ पड़े किसी बाप को अपनी
जिन्दा जलादी गयी बेटी की लाश
की शायद खाली पेट
और दोहरी हुई पीठ
पर बच्चा बांधे
सर पर सीमेंट का टोकरा लिए
बिल्डिंग की इमारत पर चढ़ती औरत
न तौली जाए
ठेकेदार की नज़रों से
रात के
स्वाद परिवर्तन के लिए
की शायद फिर न
कोई प्यारी खूबसूरत शक्ल
जला दी जाए एसिड से
अस्वीकार करने पर
अवांछित प्रणय निवेदन
की हम औरते भी मानी जाए
देह से परे भी कुछ
बलत्कृत न हों
हर बार
घर से बाहर निकलने पर
भीतर तक भेदती निगाहों से
और उन गालियों से
जो हमारे पुरुषों को दी जाती हैं
हमारे नाम पर
की शायद.........
की शायद......
की हम भी
स्वीकार कर लिए जाएं
सामान्य इंसान की तरह
आइये मनाये महिका दिवस
इस उम्मीद के साथ
की अगले वर्ष कुछ तो
बदला रहेगा हमारे लिए
-मृदुला शुक्ला
की शायद कल हट सकें
अस्पतालों के बाहर लगी तख्तियां
जिन पर लिखा होता है
की "यहाँ लिंग परिक्षण नहीं किया जाता"
(की जो इशारा मात्र होता है
यह बताने का यहाँ ये संभव है)
की शायद बंद हो सके
दी जाने वाली बधाईयां
पुत्र जन्म पर
गाये जाने वाले सोहर
बजाई जाने वाली थाली
हिजड़ों के नाच
और बेटी के जन्म पर
"कोई नहीं जी आजकल तो
बेटे और बेटी बराबर हैं"
की शायद फिर न
नोच कर फेक दी जाए
गटर के पास कोई कन्या
जो पिछले नवरात्रों में
पूजी गयी थी
देवी के नाम पर
की शायद बंद हो सके चकले
जहाँ हर दिन औरत
तौलकर खरीदी जाती है
बकरे और मुर्गे
के गोश्त के भाव
की शायद जीवन साथी चुनते समय
देखि जाए सिर्फ और सिर्फ लड़की
न तौली जाए रूपए या रसूख के पलड़े पर
और फिर न ढ पड़े किसी बाप को अपनी
जिन्दा जलादी गयी बेटी की लाश
की शायद खाली पेट
और दोहरी हुई पीठ
पर बच्चा बांधे
सर पर सीमेंट का टोकरा लिए
बिल्डिंग की इमारत पर चढ़ती औरत
न तौली जाए
ठेकेदार की नज़रों से
रात के
स्वाद परिवर्तन के लिए
की शायद फिर न
कोई प्यारी खूबसूरत शक्ल
जला दी जाए एसिड से
अस्वीकार करने पर
अवांछित प्रणय निवेदन
की हम औरते भी मानी जाए
देह से परे भी कुछ
बलत्कृत न हों
हर बार
घर से बाहर निकलने पर
भीतर तक भेदती निगाहों से
और उन गालियों से
जो हमारे पुरुषों को दी जाती हैं
हमारे नाम पर
की शायद.........
की शायद......
की हम भी
स्वीकार कर लिए जाएं
सामान्य इंसान की तरह
आइये मनाये महिका दिवस
इस उम्मीद के साथ
की अगले वर्ष कुछ तो
बदला रहेगा हमारे लिए
-मृदुला शुक्ला
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