त्रासद है गमलों मैं फूलों वालों पौधों होना
विस्तार नहीं पाती हमारी शिराएँ धरती से अमृत
सोखने तक
बौनी होती जाती है धमनियां
दिन ब दिन
बोनसाई बनने की
अनचाही यात्रा मैं
सुना है बागीचों मे फूलों पर चलती है
भौरों और तितलियाँ की प्रेम कहानियाँ
अमृत बटोरती मधुमखियाँ
मगन मन गुनगुनाती है उनके प्रणय गीत
हम उगते है घरो की बाल्कनियों
घरों का वो कोना जो जिन्दा रखता है
मरते हुए धरती आकाश ,चाँद तारों को
जहाँ मुह चिढाते हैं हमें रात भर काफी के
जूठे मग
तिर्यक मुख बियर की औंधी पड़ी बोतलें
पानी मिलता है तौल कर
(जिसे अक्सर भूल जाती है नामुराद कमला )
जो बूँद बूँद टपक जाता है हमारी
जिजीविषा रंध्रो से
चलो कोई नहीं
हमारा तो तब भी आधार है
हमारे कोमरेड
तो लटके होतें हैं खूंटियों पर
सलीब परजैसे ............
-मृदुला शुक्ला
विस्तार नहीं पाती हमारी शिराएँ धरती से अमृत
सोखने तक
बौनी होती जाती है धमनियां
दिन ब दिन
बोनसाई बनने की
अनचाही यात्रा मैं
सुना है बागीचों मे फूलों पर चलती है
भौरों और तितलियाँ की प्रेम कहानियाँ
अमृत बटोरती मधुमखियाँ
मगन मन गुनगुनाती है उनके प्रणय गीत
हम उगते है घरो की बाल्कनियों
घरों का वो कोना जो जिन्दा रखता है
मरते हुए धरती आकाश ,चाँद तारों को
जहाँ मुह चिढाते हैं हमें रात भर काफी के
जूठे मग
तिर्यक मुख बियर की औंधी पड़ी बोतलें
पानी मिलता है तौल कर
(जिसे अक्सर भूल जाती है नामुराद कमला )
जो बूँद बूँद टपक जाता है हमारी
जिजीविषा रंध्रो से
चलो कोई नहीं
हमारा तो तब भी आधार है
हमारे कोमरेड
तो लटके होतें हैं खूंटियों पर
सलीब परजैसे ............
-मृदुला शुक्ला
sundar lekhan, sundar rachna
ReplyDeleteAti Sunder rachna
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ...मन के भाव
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