Sunday 6 January 2013

पत्थर

"तुम"
और
तुम्हारे पीछे
चुप चाप चलती
"भीड़"
पास ही कहीं ?
नेपथ्य/श्मशान/सन्नाटा

अचानक
भीड़ के हाथों में
"पत्थर"
पास ही कहीं ?
मसीह/गैलीलियो/सुकरात

पत्थरों की कारस्तानी
आज जाना !!
समझ आया !!
तुम्हारा पूजा जाना
तुम जड़ होकर
"चेतना"
को विस्तार देते हो
मंदिरों में पथराये
से बैठे रहते हो
और भीड़ के
हाथ में आकर
आदमी को तार देते हो

No comments:

Post a Comment